Wednesday, June 4, 2008

ब्रज के सवैया-2

अंत समय जब आये प्रभू, चले आना न देर जरा करना।
निज साथ लिवाकर ले चलना, मेरे दोषौं पे ध्यान नहीं धरना॥
दोषौं पे ध्यान दिया दीनानाथ, तो सैज नहीं भव से तरना।
अब नाथ उबारौगे आप मुझे, तेरे द्वारे पै मैंने दिया धरना॥

आप दीनौं के बंधू करुना सिन्धू, दुखसागर को नागर मेरे हरना।
कृपा ऐसी करौ अब नाथ प्रभू, तेरा नाम रटे बस ये रसना॥
तेरे ध्यान मैं जीवन ये सारा कटे, तेरा नाम ही लेकर हो मरना।
अब नाथ उबारौगे आप मुझे, तेरे द्वारे पै मैंने दिया धरना॥

दिन रात रटूं तेरा नाम प्रभो, कुछ और नहीँ मुझको करना।
कृष्ण भक्ती की शक्ती प्रदान करो, तभी काम होगा ये मेरा सरना॥
जोर पूरा लगाकर देख लिया, पर बात बने ना ये तेरे बिना।
अब नाथ उबारौगे आप मुझे, तेरे द्वारे पै मैंने दिया धरना॥

अहो भाग्य तेरे बाँसुरी हैं बड़े, कर कन्जौं मैं साँवरे साजती हो।
मधु मिश्रित से मनमोहन के, अधरौं पे धरी तुम बाजती हो॥
कटि पीत के मध्य फँसी कबहू, अति श्याम शरीर पे राजती हो।
कुछ भेद बता हमको भी अरी, मनमोहन ओ जो तू भावती हो॥

धूप और ताप सही बरषा, जब नाम सखी मेरौ बाँस कहयौ।
प्रणौँ की आहुती दे कर के, दियौ काट हियौ फिर गयौ घर लायौ॥
छेद शरीर किये सब दूर, जो दोष थे शेष नयौ तन पायौ।
औ बाँसुरी मेरौ नाम 
पड़्यौ, तब मोहन ने मुझकूँ अपनायौ॥