Friday, August 22, 2008

राम भजन-1

अब मोइ और कछू नहिं चहियहिं।
राम नाम के सुन्दर मोती, अब हिय बिच बिखरहियहिं। अब मोइ और……॥
छोड़ घुमक्कड़पन मन मूरख, हरि मन्दिर बस जइयहिं। अब मोइ और……॥
देर भई बहु समय बीति गयौ, अब पद रामहिं गहियहिं। अब मोइ और……॥
करै चाकरी क्यों इस जग की, जब मालिक रामईयहिं। अब मोइ और……॥
बिषय भोग कौ रोग भयंकर, दवा ‘नाम’ की खईयहिं। अब मोइ और……॥
क्यों रोबै झूठे जग कूँ तू, संग कोई नहीं जईयहिं। अब मोइ और……॥
संग जाइगौ राम भजन ही, राम न तू बिसरईयहिं। अब मोइ और……॥
नैंन मूँदि संजय लखि मूरति, बूँद एक ढरिकईयहिं। अब मोइ और……॥