Tuesday, August 5, 2008
ब्रज के दोहे: भाग-2
एक दिना सब छोड़ के, उड़ जाएगा जीव।
रोज देख नहीं मानता, कितनी बात अजीब॥11॥
कितना भी धन जोड़ लो, नहीँ जाइगा साथ।
साथ जायगा यदि किया, भजन राधिका नाथ॥12॥
घट घट में वो बसत हैं, नहीं देखते लोग।
भक्ति भाव से दीखते, छोड़ सकल सब भोग॥13॥
सकल कुटिल संसार है, माया अपरम्पार।
ढाई अक्षर प्रेम का, यही जगत का सार॥14॥
ला ला ला ला क्यों करै, नहीं देइगा कोइ।
लाला से ला ला कहै, जो माँगै सो होइ॥15॥
संजय बात बड़ी नहीं, हो तुम निपट गँवार।
जान बूझ सर्वस्व भी, गहे हुए संसार॥16॥
रस्सी कहती पेड़ से, छोड़ो मेरे भाइ।
माया यों छूटै नहीं, को करि सकै सहाइ॥17॥
जबसे कृष्ण कथा सुनी, नहीं कुछ और सुहाइ।
अब हमको परवा नहीं, होना हो हो जाइ॥18॥
अधर धरी वह बाजती, करै अधर हिय हाइ।
सौतन संग न छोड़ती, जहाँ श्याम वहीं जाइ॥19॥
ध्यान धरा धरना धरा, धरा धरा धन धाम।
धुनि धूनी धरि ध्यान मैं, धीय भयी धनवान॥20॥
ब्रज के दोहे: भाग-1
अरे बाबरे साँवरे, कूँ तू चित्त लगाइ।
श्याम रंग जो जमि रह्यौ, “श्याम” रंग से जाइ॥1॥
ओ मन मूरख जागि जा, सकल गुणन की खान।
मुरलीधर घनश्याम हैं, उनको तू पहचान॥2॥
जिस माया के जाल में, फँसा हुआ भरमाइ।
नित्य चाकरी करति है, उनके ढिंग वो जाइ॥3॥
कलियुग में दुख बहुत हैं, पर एक सुख अपार।
जो सुमिरै हरि नाम कूँ, झट से उतरे पार॥4॥
क्षण भन्गुर इस जगत में, पति पत्नी और पुत्र।
झूठे सब सम्बन्ध हैं, माधव सच्चे मित्र॥5॥
दौड़ा दौड़ा फिरत है, नहीं मिलैं भगवान।
परमेश्वर हिय में बसैं, जब धर देखौ ध्यान॥6॥
राधे तुम घनश्याम की, प्रियतम अपरम्पार।
कृपा करो मातेश्वरी, हो चरणों में प्यार॥7॥
ए मन क्यों इस जगत में, तू फँसता है व्यर्थ।
चार दिना का खेल है, नहीं कोई भी अर्थ्॥8॥
भोर भयो दोपहर भी, अब आयेगी शाम।
क्षण भन्गुर यह जिंदगी, उनको करो प्रणाम॥9॥
मेरी मेरी में रहा, बिता दिया सब काल।
प्रभू ध्यान कीना नहीं, फँसा रहा जग जाल॥10॥
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