Tuesday, September 2, 2008

राम भजन-2



सोई मालिक रघुवीर हमारे।
पीताम्बर जिन अंग बिराजे, धनुषबाण जिन धारे॥ सोइ मालिक……॥
घर दशरथ जिन जनम लियौ, प्रभु नित मारें किलकारे॥ सोइ मालिक……॥
बड़े भए मुनि संग बन धाए, दैत्य भयंकर मारे॥ सोइ मालिक……॥
जनक यज्ञ में धनुष तोरि शिव, सिय वरमाला डारे॥ सोइ मालिक……॥
लखन सिया सँग लीला कीन्ही, पुनि वन हेतु सिधारे॥ सोइ मालिक……॥
जनम जनम कौ केवट भूखौ, प्रभु पद कमल पखारे॥ सोइ मालिक……॥
पार उतरि केवट की नैया, सब भव-सागर तारे॥ सोइ मालिक……॥
नाम लेत संजय की अखिंयन, भरि भरि बहैं पनारे॥ सोइ मालिक……॥

2 सितम्बर 2008
शिकागो, अमेरिका

Sunday, August 24, 2008

कृष्ण पद-1


ओ माधव सुनि अरज हमारी।
निमिष निमिष दिन बहुत बीति गए, सुदि कीन्ही ना नैंक तिहारी। ओ माधव सुनि……॥
जिन जिन याद कियो सच्चे मन, छुटि गयी सब दुनियादारी। ओ माधव सुनि……॥
अब कछु कृपा करहुँ योँ श्यामल, मोहनी मूरति लगै पियारी। ओ माधव सुनि……॥
अब न जनम चहियें जग गिरिधर, अब जग से मन होइ दुखारी। ओ माधव सुनि……॥
मोकूँ श्याम करहु क्यों देरी, जब तुमनें सब दुनिया तारी। ओ माधव सुनि……॥
दीनदयाल नाम तुमरौ है, दीनन के तुम हो हितकारी। ओ माधव सुनि……॥
नहीं उबारौ संजय अबकें, लोग हसिंगे दै दै तारी। ओ माधव सुनि……॥

Friday, August 22, 2008

राम भजन-1

अब मोइ और कछू नहिं चहियहिं।
राम नाम के सुन्दर मोती, अब हिय बिच बिखरहियहिं। अब मोइ और……॥
छोड़ घुमक्कड़पन मन मूरख, हरि मन्दिर बस जइयहिं। अब मोइ और……॥
देर भई बहु समय बीति गयौ, अब पद रामहिं गहियहिं। अब मोइ और……॥
करै चाकरी क्यों इस जग की, जब मालिक रामईयहिं। अब मोइ और……॥
बिषय भोग कौ रोग भयंकर, दवा ‘नाम’ की खईयहिं। अब मोइ और……॥
क्यों रोबै झूठे जग कूँ तू, संग कोई नहीं जईयहिं। अब मोइ और……॥
संग जाइगौ राम भजन ही, राम न तू बिसरईयहिं। अब मोइ और……॥
नैंन मूँदि संजय लखि मूरति, बूँद एक ढरिकईयहिं। अब मोइ और……॥

Tuesday, August 19, 2008

ब्रज के भजन:1



माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे।
सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

सूनौ जीवन सूनी कुटिया, चहुँ ओर अँधियारी रे……सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

झूठी माया झूठी काया, झूठी दुनियादारी रे…… सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

जुग बीते निशि बासर बीते, सुदि ना करी तिहारी रे…… सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

अबकैं श्याम उबारौ संजय, है गयी गल्ती भारी रे…… सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

ब्रज के भजन:1



माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे।
सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

सुनौ जीवन सुनी कुतिया, चहुँ ओर अँधियारी रे……सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

झूठी माया झूठी काया, झूठी दुनियादारी रे…… सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

जुग बीते निशि बासर बीते, सुदि ना करी तिहारी रे…… सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

अबकैं श्याम उबारौ संजय, है गयी गल्ती भारी रे…… सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

Tuesday, August 5, 2008

ब्रज के दोहे: भाग-2


एक दिना सब छोड़ के, उड़ जाएगा जीव।
रोज देख नहीं मानता, कितनी बात अजीब॥11॥

कितना भी धन जोड़ लो, नहीँ जाइगा साथ।
साथ जायगा यदि किया, भजन राधिका नाथ॥12॥

घट घट में वो बसत हैं, नहीं देखते लोग।
भक्ति भाव से दीखते, छोड़ सकल सब भोग॥13॥

सकल कुटिल संसार है, माया अपरम्पार।
ढाई अक्षर प्रेम का, यही जगत का सार॥14॥

ला ला ला ला क्यों करै, नहीं देइगा कोइ।
लाला से ला ला कहै, जो माँगै सो होइ॥15॥

संजय बात बड़ी नहीं, हो तुम निपट गँवार।
जान बूझ सर्वस्व भी, गहे हुए संसार॥16॥

रस्सी कहती पेड़ से, छोड़ो मेरे भाइ।
माया यों छूटै नहीं, को करि सकै सहाइ॥17॥


जबसे कृष्ण कथा सुनी, नहीं कुछ और सुहाइ।
अब हमको परवा नहीं, होना हो हो जाइ॥18॥

अधर धरी वह बाजती, करै अधर हिय हाइ।
सौतन संग न छोड़ती, जहाँ श्याम वहीं जाइ॥19॥

ध्यान धरा धरना धरा, धरा धरा धन धाम।
धुनि धूनी धरि ध्यान मैं, धीय भयी धनवान॥20॥

ब्रज के दोहे: भाग-1


अरे बाबरे साँवरे, कूँ तू चित्त लगाइ।
श्याम रंग जो जमि रह्यौ, “श्याम” रंग से जाइ॥1॥

ओ मन मूरख जागि जा, सकल गुणन की खान।
मुरलीधर घनश्याम हैं, उनको तू पहचान॥2॥

जिस माया के जाल में, फँसा हुआ भरमाइ।
नित्य चाकरी करति है, उनके ढिंग वो जाइ॥3॥

कलियुग में दुख बहुत हैं, पर एक सुख अपार।
जो सुमिरै हरि नाम कूँ, झट से उतरे पार॥4॥

क्षण भन्गुर इस जगत में, पति पत्नी और पुत्र।
झूठे सब सम्बन्ध हैं, माधव सच्चे मित्र॥5॥

दौड़ा दौड़ा फिरत है, नहीं मिलैं भगवान।
परमेश्वर हिय में बसैं, जब धर देखौ ध्यान॥6॥

राधे तुम घनश्याम की, प्रियतम अपरम्पार।
कृपा करो मातेश्वरी, हो चरणों में प्यार॥7॥

ए मन क्यों इस जगत में, तू फँसता है व्यर्थ।
चार दिना का खेल है, नहीं कोई भी अर्थ्॥8॥

भोर भयो दोपहर भी, अब आयेगी शाम।
क्षण भन्गुर यह जिंदगी, उनको करो प्रणाम॥9॥

मेरी मेरी में रहा, बिता दिया सब काल।
प्रभू ध्यान कीना नहीं, फँसा रहा जग जाल॥10॥