Tuesday, August 19, 2008

ब्रज के भजन:1



माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे।
सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

सुनौ जीवन सुनी कुतिया, चहुँ ओर अँधियारी रे……सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

झूठी माया झूठी काया, झूठी दुनियादारी रे…… सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

जुग बीते निशि बासर बीते, सुदि ना करी तिहारी रे…… सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

अबकैं श्याम उबारौ संजय, है गयी गल्ती भारी रे…… सुनि अरज हमारी रे।
माधव गिरिधारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि अरज हमारी रे, सुनि गरज हमारी रे॥

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