Tuesday, June 10, 2008

ब्रज के सवैया-10

अहोभाग्य तेरे बड़भागी बड़े, मन मोहन को जो तू है अति भाया।
नन्दगाँव में ऐसा न एक बचा, जिस द्वार से तू न गया हो चुराया॥
भेद किया नहीं मोहन ने, घर हो अपना फिर या हो पराया।
मान बढ़ाकर तेरा महा, फिर माखन चोर सा नाम है पाया॥

एक दिना बलराम से रूठ के, शयाम ने थामी यशोदा की सारी।
बलदाऊ है मोकूँ खिजाबै बड़ौ, संग ग्वालन के मोहि दैवै है गारी।
तेरौ ही जायौ बताबै खुदि, और मोकूँ कहै लायौ मोल बजारी।
मन खेलन कूँ नहीं होत मेरो, अब कहा करूँ मेरी मैया बतारी॥

सुनि श्याम की बात सुहानी बड़ी, मन में मुसिकायी यशोमति मैया।
लै उर कण्ठ लगायौ है लाल कूँ, प्यार भरी फिर लेत बलैया॥
आमन दै आज झूठे गमार कूँ, लूंगी खबर है कहाँ तेरौ भैया।
झूठौ सौ क्रोध करे बलराम पै, बारी ही जाय कन्हैंया पै मैया॥

प्यार अपार करैं निज लाल पै, फूले से गालन कूँ सहरामैं।
निज जायौ बताइ रहीं घनश्याम कूँ, गोधन की झूठी सोगन्ध खामैं॥
लायौ गयौ बलराम बजार से, यों कहि कें सुत कूँ समझामें॥
मैया-कन्हैंया के प्रेम कूँ देखि कें, नन्द महा मन में हरसामें॥

कृष्ण कहूँ घनश्याम कहूँ, सुखधाम कहूँ या कहूँ बनबारी।
कैसे रिझाऊँ कन्हैयाँ तुझे, मति मन्द हूँ मैं सुनि ले मनहारी॥
पूजा करुँ तेरी सेवा करूँ कैसे, आवे नहीं मुझको त्रिपुरारी।
कौनसी बस्तु मैं भेंट करूँ, सर्वस्व तो तेरा ही है गिरिधारी॥

No comments: