Monday, June 9, 2008

ब्रज के सवैया-7

पीछे ही पीछे वो भाजत हैं, एक कारी सी काँमरि लिए अपनाई।
धेनु चरावत डोलत हैं, ब्रज में सँग ग्वालों के टोली बनाई॥
अति सुन्दर लीला किये फिरते, धेनु सेवा में पुन्य रहे हैं बताई।
गोलोक कूँ छोड़ि के गोकुल में गोविंद रहे देखो गाय चराई॥

माता यशोदा पै आयी शिकायत कि, लाला ने तेरे ने माँटी है खाई।
धाईं सुन मैया कन्हैंयाँ के पास, कहा तेरे मुँह में दै मोकूँ बताई॥
भोले से लाला ने खोल दियौ मुँह तो, तीनहुँ लोक दये हैं दिखाई।
ब्रह्म परम परमेश्वर है यह, जानि यशोदा रहीं चकराई॥

हाय महा अपराध कियौ, बिना जाने ही ब्रह्म की कीन्ही पिटाई।
पाप बड़ौ मैंने भारी कियौ, परै जीवन दीखत मोर खटाई॥
श्याम ने देखी यों मौया दुखी, मन से यह बात दयी है मिटाई।
भूलीं यशोदा ये लीला महा, निज लाल कूँ कंठ रहीं हैं लगाई॥

अति चंचल ज्यों चपला बनि कें, क्यों है घूमत चित्त की चाहन में।
भटक्यौ भटक्यौ सौ तू डोलत है, इन माया की टेड़ी सी राहन में॥
कछू हाथ लगैगौ न तेरे यहाँ, अनदेखी गली और गाँमन में।
लगि जा लगि जा मन मूरख तू, अब तौ घनश्याम के पामन में॥

जब आगे को पैर बढ़ा ही दिया, तव राह के काँटों से क्या डरना।
पथरीली हो गीली हो जैसी भी हो, अब पीछे नहीं हमको मुड़ना॥
भव जाल को छोड़ि के दूर चले, तव माया के फाँसे में क्यों फँसना।
घनश्याम ही एक हैं लक्ष्य बने, अब ध्यान उन्हीं का हमें धरना॥

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