Monday, June 16, 2008

ब्रज के सवैया-15

दृढ़ लक्ष्य बना गिरिराज खड़ा, ब्रज रक्षण में रहता मतवाला।
फल फूलों से वृक्ष सुशोभित हैं, सम सैन्य खड़े बहु वृक्ष विशाला॥
निर्भीक बना ब्रज का प्रहरी, दृढ़ पैर जमा अतुलित बलशाला।
इससे टकराकर खण्डित हों, बड़े वीर हों या फिर काल कराला॥

जहाँ गेंदा गुलाब के फूल खिले, जल में दल नीरज भा रहे हैं।
बन बाग तड़ाग सुरम्य सजे, खग वृन्द सभी कुछ गा रहे हैं॥
फल फूल सुशोभित वृक्ष सभी, मन में नहीं फूले समा रहे हैं।
कर बद्ध लखें सब स्वागत में, घनश्याम अभी जेसै आ रहे हैं॥

हँसि हौंस हिलोर भरै यमुना, उनमत्त हुई हिय मैं हरसाती।
जल में कलनाद के क्रंदन से, सुकुमारी सुरम्य सा साज सजाती॥
जलधार में प्रेम समेंटे अपार, लखै प्रभु प्रेम में आँसू बहाती।
बहै अविराम बनी निष्काम, हमें कृत कर्म का पाठ पढ़ाती॥

शीतल मन्द समीर बहै, रहें कूकत कोकिला बागन में।
सुचि स्वच्छ सरोवर नीर भरे, खिलें पुष्प सुगन्धित राहन में॥
रिमझिम रिमझिम बदरा बरसै, ॠतुराज हरै उर सावन में।
मनोहारी मनोहर मंगलमय, छवि मोद भरे वृन्दावन में॥

तृण गुल्मों पै चन्द्र छटा छिटकी, नभ में रजनीश विराज रहे हैं।
तरु पल्लव पुष्प लता कलियाँ, कर भाग्य बुलंदी पै नाँज रहे हैं॥
माधुर्य मगन मधुवन मन में, सुरलोक भी सोचि के लाज रहे हैं।
भर नैन कोई लख ले उन को, कर नूतन रास भी आज रहे हैं॥

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