Monday, June 23, 2008

ब्रज के सवैया-20

जग जाल असत्य है मित्र सुनो, भला आखिर कौन यहाँ अपना।
क्षण भंगुर है यह जीवन भी, जिसमें हम देख रहे सपना॥
दुख दर्द भरे दुख आलय में, अब और नहीं इसमें खपना।
बस एक ही, एक ही सत्य यहाँ, भगवान का नाम सदा जपना॥

हम खाकर बोलें तुम्हारी कसम, हमको बस पास तुम्हारे ही आना।
मिल ली मिलनी थी सजा हमको, अब और नहीं घनश्याम सताना॥
पाम परूँ कर जोर कहूँ, बस माँफ़ करो अबके तुम कान्हा।
करि बेगि बुलाया दया करके नहीं, तो फिर भाव दया न जताना॥

नहीं चाहिये भाव एश्वर्य तुम्हारा, नहीं देखना दिव्य माया प्रदर्शन।
हटालो ये ज्योती नहीं देखना है, कराम्बुज में शंख चक्र और सुदर्शन॥
रहो क्षीर सागर में दैत्यों पै भारी, भला हमको उससे भी क्या है आकर्षन।
खेले श्रीधामा के संग जो रूप, उसी रूप का हमको दे दो न दर्शन॥

धरा तेरे भी भाग्य बुलन्द बड़े, घनश्याम ने पाम धरा तेरे ऊपर।
सुरलोक नहीं, सतलोक नहीं, तुझको ही चुना बस कोर कृपा कर॥
लीला अनौंखी करी ब्रज में, वन धन्य किये पूज्य धेनु चराकर।
एक ही पंथ में कार्य किये बहु, ग्वालों के संग में माखन खाकर॥

धन दौलत दृव्य भरे घर में, पद मान मिला पद्ववी प्रभुता।
नहीं दुख सुखी यह जीवन है, कोई बैरी नहीं सब करैं मित्रता॥
यह व्यर्थ अनर्थ सभी उर में, यदि प्रेम प्रभू का नहीं जगता।
अमान्य हैं शून्य करोड़ों जो हों, यदि अंक अगारी नहीं लगता॥

6 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा अनुभव रहा सवैया पढ़ने का, आभार.

पी के शर्मा said...

वाह क्‍या खूब लिखा
ब्‍लोगल वार्मिंग में आपका स्‍वागत‍ है

ताऊ रामपुरिया said...

धरा तेरे भी भाग्य बुलन्द बड़े, घनश्याम ने पाम धरा तेरे ऊपर।
वाह... अति सुंदर ! जय जय राधे ..जय जय घनश्याम ...!

डॉ .अनुराग said...

वाह सवैया पढ़ने का, आभार.

आशीष कुमार 'अंशु' said...

सत्य वचन

Raji Chandrasekhar said...

स्वागत है, आप का ।
मैं मलयलम का एक ब्लोगर, थोड़ा थोड़ा हिन्दी में भी ।