जिसने कभी प्रेम किया ही नहीं, वह प्रेम की भाषा को जानेगा क्या।
दया भाव कभी उर आया नहीं, वह दीन-दयाल को मानेगा क्या॥
जिसे स्वाद नहीं रसपान का हो, निज को रस-प्रेम में सानेगा क्या।
रसनाम लिखा रसना पै नहीं, रस-प्रेम को वो पहचानेगा क्या॥
चकरी जब काल की घूमती है, तब माधव नील सुहाने लगैं।
उड़ पंछी जो साँझ भये घर में, हर हाल में वापस आने लगैं॥
कुछ मित्र पुरानों की स्मृति भी, उर अंतर में लहराने लगैं।
बस यों समझो कुछ काल बिता, हम मित्र सियाटल आने लगैं॥
अपने वह हैं मिलकर जिनसे, मन में लगता अपनापन है।
यदि भाव बिचार नहीं मिलते, फिर तो बस जीवन यापन है॥
कल क्रन्द करैं सुन कर्ण नहीं, हरी कीर्तन तो बहरापन है।
सतसंग मिले करने को सदा, प्रभु प्रेम कृपा का ये मापन है॥
हुए वर्ष व्यतीत अतीत में तीन, तो दीन-दयाल का आया बुलावा।
हम भूल गये नहीं भूले हैं वो, यह सोच भरें जल नैन कुलावा॥
रख दूर हमें भी है नेह किया, किया प्रेम निरंतर खूब बढ़ावा।
अब जो भी हुआ बस यों समझो, यह पाठ प्रभू का है प्रेम बढ़ावा॥
राधे रानी की जय महरानी की जय, कहने को हुआ मन आज भला।
यह अष्ठमी राधा का पर्व महा, बुध उन्नीस तारीख साज भला॥
अहलादिनी शक्ती हैं मातेश्वरी, यह जान लो संजय राज भला।
भज ले भज ले मन में उनको, जग में इससे नहीं काज भला॥
Thursday, July 17, 2008
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1 comment:
Jai shree radhe sanjay baba ji,bahut sunder karya kia yanha kavitt likhkar hume bhi anand prapt hua
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